आज मैं आपको शेखावाटी के लौ’ह पुरुष कर्मठ नेता पदमश्री स्वर्गीय श्री शीशराम जी ओला की जीवनी के बारे में बताऊंगा। ओला जी का जन्म 30 जुलाई 1927 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के अरडावता गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम चौधरी मंगलाराम जी ओला, माता का नाम श्रीमती सोनी देवी था। उन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद उनका विवाह श्रीमती शिव देवी के साथ हुआ।
ओला जी के दो पुत्र और एक पुत्री है। उनका एक पुत्र श्री विजेंद्र ओला झुंझुनू से वर्तमान में विधायक हैं। ओला जी का राजनीतिक सफर भी नींव से शुरू हुआ। सन 1948 में वह अपने गांव अरडावता के सरपंच चुने गए । 1951 तक वहां के सरपंच रहे। 1957 और 1962 के राजस्थान विधानसभा के चुनावो में खेतड़ी विधानसभा क्षेत्र से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विधायक रहे ।1967 के चुनाव में वह स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार से चुनाव हार गए लेकिन 30 जून 1969 को हुए उपचुनाव में खेतड़ी क्षेत्र से चुनाव जीत गए और 1972 और 1977 में पिलानी तथा 1980, 1985, 1993 के विधानसभा चुनाव में झुंझुनू विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए ।
18 फरवरी 1981 को राज्य सरकार मंत्रिमंडल में ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज तथा सैनिक कल्याण विभाग के प्रभारी राज्य मंत्री नियुक्त किए गए। 11 मार्च 1985 में वह सहकारिता एवं पर्यावरण और सैनिक कल्याण आदि विभागों के प्रभारी राज्यमंत्री बने। 16 अक्टूबर 1985 को उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया। 6 फरवरी 1988 को उन्हें राज्य सरकार में जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी भूजल तथा सैनिक कल्याण विभाग का दायित्व सौंपा गया। 12 जून 1989 को उनका विभाग बदल कर रावी व्यास नदियों के सिस्टम संबंधित कार्य ,आबकारी तथा सैनिक कल्याण विभाग दिया गया। वे 8 बार विधायक और 5 बार सांसद चुने गए थे।
बीसवीं सदी के थे मुसाफिर, हर मंजिल के वो वीर थे। ग्राम पंचायत से संसद का सफर, बाजी पलटने में माहिर थे।
शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने की एवज में श्री ओला जी को सन 1968 में पदम श्री से सम्मानित किया गया। श्री ओला ने महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण क्षेत्र अरडाता में बालिका प्राथमिक विद्यालय, बालिका सीनियर स्कूल, डिग्री कॉलेज , शिक्षण प्रशिक्षण महिला विद्यालय, b.Ed कॉलेज एवं बालिका छात्रावास का शुभारंभ कर उल्लेखनीय कार्य किया। महिला शिक्षा में झुंझुनू बहुत ही पिछड़ा हुआ था उस समय श्रीमान ओला जी ने 1952 में इंदिरा गांधी बाल निकेतन नाम से एक संस्था की स्थापना की जिसका शुभारंभ तीन बालिकाओं से शुरू हुआ। आज महिला शिक्षा में झुंझुनू प्रथम श्रेणी में आ खड़ा हुआ है।
दुनिया का है यही दस्तूर, महिलाएं सदा से ग्रहणी है। झुंझुनू की है बात निराली, यहां शिक्षा में अग्रणी हैं।
कुछ खास बाते:
राजनीति में अपनी अलग पहचान रखने वाले श्री ओला जी की याददाश्त बहुत ही अद्भुत थी। एक बार जिससे मिल लेते थे 10 वर्ष बाद भी उसको भूल नहीं पाते अर्थात नाम और गांव तपाक से बता देते थे।
दिल्ली में अपने निवास स्थान पर झुंझुनू एवम् शेखावाटी क्षेत्र से आने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए कोई रोक-टोक नहीं थी। कोई गेटकीपर नहीं था। आने वाला व्यक्ति सीधे बेडरूम में जाए और अपना काम बताएं। जब तक कार्य पूरा नहीं हो ,तब तक दिल्ली में रहना और खाना पीना सब कुछ ओला जी के निवास स्थान पर किया जाता था।
एक बार चुनावो के समय ओला जी चुनाव प्रचार हेतु अपने विधानसभा क्षेत्र में गए। किसी बात पर नाराज होने की वजह से एक गांव पूरा का पूरा उनसे विरुद्ध हो गया। और गांव वालों ने साफ-साफ कह दिया की हम आप को वोट नहीं देंगे। इस पर ओला जी ने उनकी बात में सहमति जताई और कहां कि मैं आपकी बात से सहमत हूं लेकिन एक काम करो मुझे केवल पूरे गांव से एक वोट दे दो। गांव वालों ने हां कह दी और कहां कि किस व्यक्ति का मत लेना चाहते हो। शीशराम जी ने गांव में एकमात्र अन्य जाति के व्यक्ति का नाम लेकर कहा कि मुझे इसका मत चाहिए। उस व्यक्ति ने अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए मत देने से मना कर दिया और उसी एक बात ने पूरे गांव को शीशराम जी के पक्ष में कर दिया।
भारत चीन यु’द्ध के दौरान देश की अर्थव्यवस्था पर मंडराते खतरे को देखते हुए ओला जीने झुंझुनू जिले के सेठ साहूकारों से अथाह सोना इकट्ठा कर राष्ट्रीय कोष में जमा कराया था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने उनके महिला शिक्षा के प्रति प्रेम, पर्यावरण के प्रति प्रेम और राष्ट्र के प्रति प्रेम को देखते हुए पदम श्री से सम्मानित किया था।
बात करते हैं 1980 के चुनावों से जब शीशराम ओला को हर कोई जानने लगा था…
1980 के लोकसभा चुनाव में झुंझुनू लोकसभा सीट से शीशराम ओला के पास कांग्रेस की टिकट थी। ओला के सामने थे जनता पार्टी के भीम सिंह और लोक दल से सुमित्रा सिंह। इस चुनाव में भीम सिंह ने जीत हासिल की, दो नंबर पर रहीं लोक दल से सुमित्रा सिंह और तीसरे नंबर पर रहे शीशराम ओला। कांग्रेस का टिकट होने के बावजूद वे लोकसभा चुनाव नहीं जीत सके। लेकिन 1980 में हुए विधानसभा चुनावों में उन्होंने जीत हासिल की। यह उनकी पहली जीत थी। उस समय केंद्र और राज्य दोनों में कांग्रेस की सरकार बनी।उधर 1985 के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर उन्होंने जीत हासिल की।
फिर आए 1990 के विधानसभा चुनाव, तब तक शीशराम ओला 2 बार कांग्रेस की टिकट से जीत चुके थे तो इस बार भी उन्हें कांग्रेस की टिकट मिली लेकिन इस बार उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा और मात देने वाले थे जनता दल के माहिर आज़ाद। जिन्होंने लगभग 10000 वोटों से शीशराम ओला को पीछे छोड़ दिया। लेकिन 1993 में एक बार फिर राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुए जिसमें शीशराम ओला ने जीत हासिल की।
फिर आये 1996 के लोकसभा चुनाव लेकिन इस बार शीशराम ओला ने अयूब खान को टिकट दिलवाने में मदद नहीं की बल्कि खुद दावेदारी पेश की। शीशराम ओला को लोकसभा चुनाव के लिए झुंझुनू सीट से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ा और तिवारी कांग्रेस में शामिल हो गए। तिवारी कांग्रेस की टिकट से उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव जीता।
चुनावों में जीत हासिल करने के लिए शीशराम ओला ने रामनाराण चौधरी, शिवनारायण गिल जैसे नेताओं का साथ लिया। केंद्र में जब-जब कांग्रेस कमजोर दिखी तब-तब ओला बाकि दलों से हाथ मिलाने में पीछे नहीं हटे लेकिन जब कांग्रेस का पलड़ा भारी दिखा तो कांग्रेस में वापस भी लौटे। 1996 और 1997 के लोकसभा चुनाव उन्होंने तिवारी कांग्रेस और इंदिरा कांग्रेस से जीते। 1996 से लेकर 2009 तक उन्होंने लगातार झुंझुनू लोकसभा सीट पर जीत हासिल की। वे लगातार पाँच बार संसद तक पहुँचे। केंद्र और राज्य दोनों के ही मंत्रीमंडल में उन्होंने अपनी जगह भी बनाई थी।
निधन:
15 दिसंबर 2013 को गु़डगांव की मेदांता अस्पताल में आंत के संक्रमण के कारण ओला जी का नि’धन हो गया। 86 वर्ष के जीवन में शीशराम जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अपने क्षेत्र के प्रति समर्पित ओला जी ने पानी की समस्या हेतु जिले में नहर का पानी लाने के लिए बहुत प्रयास किए और ब्रॉड गेज हेतु किए गए प्रयास आज फलीभूत हो रहे हैं। यह उनके द्वारा किए गए प्रयासों का ही फल है।