Sunday, May 30, 2021

नाखून में दिखने वाले आधे चांद को हल्के में न लें, तुरंत चेक करें अपनी उंगलियां और पता लगाएं कि आपके शरीर में क्या दिक्कतें हैं

    



हमारे नाखून हमारी उंगलियों को जबरदस्त सुरक्षा प्रदान करते हैं। नाखून के नीचे होने वाली त्वचा काफी नाजुक होती है और इसकी सुरक्षा बहुत जरूरी है। ऐसे में नाखून ही हमारी उंगलियों की नाजुक त्वचा की सुरक्षा करता है।



हमारे स्वास्थ्य के बारे में क्या बताते हैं  नाखून में दिखने वाले आधे चांद





      कई बार देखा होगा कि डॉक्टर या वैद्य हमारे शरीर को बाहर से देखकर की कई समस्याओं के बारे में बता देते हैं। फिर हमें लगता है कि आखिरी डॉक्टर या वैद्य को कैसे मालूम चला कि हमें ये दिक्कत है, जबकि उन्होंने तो हमारी समस्याओं का पता लगाने के लिए कोई टेस्ट भी नहीं किया था । दरअसल, हमारा शरीर किसी भी प्रकार की दिक्कत होने पर अलग-अलग तरह से क्रिया करता है। इस वजह से हमारे शरीर में तरह-तरह के बदलाव होते रहते हैं । इन बदलावों को देखकर ही डॉक्टर या वैद्य हमारी कई दिक्कतों को बिना टेस्ट किए ही पकड़ लेते हैं।  इसी सिलसिले में आज हम आपको हमारे शरीर में होने वाले एक ऐसे बदलाव के बारे में बताने जा रहे हैं, जो काफी महत्वपूर्ण है। यह बदलाव हमारे शरीर में होने वाली कई दिक्कतों के बारे में संकेत देते हैं, जिन्हें नजरअंदाज न करते हुए तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।


उंगलियों की नाजुक त्वचा की सुरक्षा करता है नाखून



       हमारे नाखून हमारी उंगलियों को जबरदस्त सुरक्षा प्रदान करते हैं। नाखून के नीचे होने वाली त्वचा काफी नाजुक होती है और इसकी सुरक्षा बहुत जरूरी है। ऐसे में नाखून ही हमारी उंगलियों की नाजुक त्वचा की सुरक्षा करता है।  अलग-अलग इंसान के नाखून भी अलग-अलग तरह के होते हैं। किसी के नाखून बहुत सख्त होते हैं तो किसी के नाखुन बिल्कुल साफ और मुलायम होते हैं। कई लोगों के नाखून तो हमेशा टूटते भी रहते हैं। इसके अलावा कई लोगों के नाखून पर आधा चांद भी बना होता है। आज हम आपको नाखून के नीचे बनने वाले इसी आधे चांद के बारे में बताने जा रहे हैं कि ये हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना अहम है ?


नाखून पर बना आधा चांद बताता है हमारा स्वास्थ्य




     आप अपने हाथ के नाखूनों को चेक कीजिए और देखिए कि आपके नाखून के नीचे भी आधा चांद बना हुआ है या नहीं । नाखून में बना होने वाला ये चांद हमारे स्वास्थ्य को लेकर कई तरह के संकेत देता है। अगर नाखून में बना आधा चांद सफेद और साफ है तो समझिए आप बिल्कुल ठीक और स्वस्थ हैं। आमतौर पर अंगूठे पर बना चांद बिल्कुल साफ दिखाई देता है जबकि अन्य उंगलियों पर ये हल्का, बहुत हल्का या फिर न के बराबर दिखाई देता है। ये चांद आपके हाथों की जितनी ज्यादा उंगलियों पर दिखाई देगा मतलब समझिए वह उतना स्वस्थ है. नाखून पर दिखाई देने वाले ऐसे आधे चांद को लुनुला  कहा जाता है।



लुनुला न होना मतलब खराब स्वास्थ्य 




       जिन लोगों के नाखून में ये लुनुला बिल्कुल नहीं दिखाई देता तो ये चिंता का विषय हो सकता है। दरअसल, शरीर में खून की कमी की वजह से लुनुला नहीं दिखाई देता। इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति के नाखून में दिखने वाला लुनुला सफेद के बजाए पीला या नीला दिखे तो मतलब वह डायबिटीज का भी शिकार हो सकता है। इतना ही नहीं, कई लोगों में लुनुला का रंग लाल पाया जाता है।  ऐसे लोगों को हृदय से जुड़ी दिक्कतें हो सकती हैं। लुनुला के बारे में आपको इतना समझना होगा कि यदि ये सफेद रंग का है तो ठीक है। इसके अलावा ये आपके नाखून में नहीं है या फिर सफेद के अलावा किसी और रंग का है तो आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए।

Friday, May 28, 2021

चपरासी की नौकरी कर भरी थी कोचिंग फीस, आज चला रहे हैं 10 करोड़ टर्न ओवर वाली IT कंपनी

     हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के एक छोटे से गाँव में एक गरीब परिवार में जन्मे छोटू शर्मा के चपरासी से लेकर कंपनी के मालिक बनने तक का सफर संघर्षों से भरा और कठिन परिस्थितियों का डट कर सामना कर एक विजेता के रुप में बाहर आने की कहानी है। 1998 में ढ़लियारा के सरकारी काॅलेज से बी.ए. पास करने के बाद छोटू नौकरी की तलाश में चंडीगढ़ आ गये। मगर कोई टेक्निकल जानकारी नहीं होने की वजह से एक साधारण ग्रेजुएट के लिए नौकरी ढूँढना बहुत कठिन था। ऐसे में छोटू ने वहाँ स्थानीय “एप्टेक” सेंटर में बतौर चपरासी की नौकरी से करियर की शुरुआत की। आज चंडीगढ़ में उन्हें “गुरु ऑफ माइक्रोसाॅफ्ट टेक्नोलाॅजी” के नाम से जाना जाता है।






      छोटू को उनके सामान्य बी.ए. की डिग्री पर कोई काम नहीं मिल पा रहा था। गौरतलब है कि हर तरफ कंप्यूटर या कोई व्यवसायिक शिक्षा वाले लोगों को नौकरी में वरियता दी जाती थी। ऐसे में छोटू के लिए कंप्यूटर सीखना एक मजबूरी बन गयी थी। लेकिन उनके पास इसके कोर्स के लिए 5,000 रुपये की मामूली रकम तक नहीं थी, लेकिन वे खाली हाथ वापस घर नहीं लौटना चाहते थे। अंत में उन्होंने एक स्थानीय इंस्टिट्यूट में चपरासी की नौकरी करने के साथ ही साथ वहीं कम्प्यूटर कोर्स में दाखिला ले लिया। दिन भर चपरासी की ड्यूटी के बीच जब भी उन्हें वक्त मिलता या कोई कम्प्यूटर खाली दिखता वह उस पर प्रैक्टिस शुरू कर देते।


      वे दिनभर सेंटर पर ही रहते और रातभर जग कर पढ़ाई करते। एक साल के कम्प्यूटर कोर्स के फी के लिए चपरासी के रुप में मिलने वाली तनख्वाह काफी नहीं थी। गरीबी से जुझ रहे परिवार से भी उन्हें मदद की कोई उम्मीद नहीं थी। अपनी तंगहाली की खबर भी वह घर पर नहीं देना चाहते थे। पैसे बचाने की कवायद में कई रात उन्हें भूखे पेट पढ़ाई करना होता था। साथ ही उन्होंने बच्चों को घर पर जाकर ट्यूशन देना भी शुरू कर दिया।


      इसी बीच एक साल बीतने पर दो बेहतर काम हुए। पहला छोटू शर्मा को “माइक्रोसॉफ्ट सर्टिफाईड साॅफ्टवेयर डेवलपर” का सर्टिफिकेट मिल गया और वहीं एप्टेक में बतौर फैकल्टी उन्हें नौकरी का ऑफर मिला। अब छोटू शाम में एप्टेक में क्लास लेते और दिन में घर जाकर ट्यूशन दिया करते। इससे कुछ बेहतर कमाई होने लगी तो उसने अपना पहला साईकिल खरीदा। साल 2000 तक उन्हें ट्यूशन से अच्छी कमाई होने लगी। 2002 में उन्होंने खुद का कम्प्यूटर सेंटर खोलने का निर्णय किया। अपने बचत के पैसे से उसने एक बाईक और कम्प्यूटर खरीदकर दो कमरों का घर किराये पर लिया और कोचिंग सेंटर की शुरुआत की। 6 महीने से भी कम वक्त में 100 से भी अधिक छात्र हो गए। उनकी मेहनत रंग लायी और देखते ही देखते छोटू शर्मा का नाम डाॅट नेट टीचिंग में पूरे चंडीगढ़ में छा गया। आज उनके अधिकतर छात्र 500 करोड़ से अधिक टर्नओवर वाली कंपनियों में काम कर रहे हैं। माइक्रोसाॅफ्ट, एक्सेंचर, टीसीएस और इंफोसिस जैसी कंपनियां बड़े पैकेज पर इन छात्रों को नौकरी पर रख रही है।










      2007 में छोटू ने चंडीगढ़ में CS Infotech नाम से कई कंप्यूटर ट्रेनिंग सेंटर खोले। आज 1000 से भी अधिक छात्र कम्प्यूटर की शिक्षा ले रहे हैं और एडवांस साॅफ्टवेयर लैग्वेज सीख रहे हैं। 2009 में मोहाली में जमीन खरीद कर उन्होंने CS Soft Solutions नाम की साॅफ्टवेयर कंपनी खोली। उनकी यह फर्म देश-विदेश में अपने ग्राहको को साॅफ्टवेयर बना कर देती है और बड़ी-बड़ी कंपनियों को अपनी सेवाएँ प्रदान करती है। उन्हें लुधियाना में एलएमए ट्राईडेंट फाॅर यंग इनोवेशन आंत्रपेन्योर अवार्ड से भी नवाजा गया है। 2007 में हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने उन्हें हिमाचल गैरव पुरुष्कार से सम्मानित किया था। छोटू शर्मा आज हर जरुरतमंद की मदद करते हैं। वह योग्य छात्रों की मदद के लिए हमेशा आगे रहते हैं। गरीब परिवार में शादियों के लिए फंड देते हैं और ग्रामीण परिवेश के छात्रों को पढ़ाई में भी मदद देते हैं।

     कठिनाईयां और मुश्किलें रास्ते की हर किसी के लिए जीवन का एक पहलू होता है। कुछ इन कठिनाईयों से टूट कर बिखर जाते हैं और जिन्दगी की भीड़ में खो जाते हैं, वहीं कुछ मुश्किलों का डट कर सामना करते हैं और हर कठिनाईयों को हरा कर अपनी जीत का सपना सच करते हैं। यदि छोटू शर्मा ने कठिनाई के आगे घूटने टेक दिए होते तो वे आज भी एक चपरासी रहते। पर उनके संघर्ष और सफलता ने एक मिसाल कायम की है। चाहे कितनी भी मुश्किल राहों में हो डर कर हार नहीं माननी चाहिए। लगातार प्रयास करते हुए अपने सपनों को पूरा करने के लिए दृढ़संकल्प होना चाहिए। ऐसा करने वालों को एक दिन सफलता जरुर मिलेगी और सुनहरी जीत हासिल होगी।

Thursday, May 27, 2021

ज्योतिरादित्य सिंधिया अभी भी 146 साल पुराने आलिशान महल में रहते हैं







          बीजेपी का दामन थाम चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया की गिनती एक कद्दावर नेता के रूप में होती है।  ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले एकलौते वारिस भी हैं। 









     ज्योतिरादित्य सिंध‍िया जिस महल में रहते हैं, वो 12  लाख वर्गफीट से भी ज्यादा बड़ा है।  इस महल के वो इकलौते मालिक हैं । 








      इस महल को महाराजाधिराज जयजीराव सिंधिया अलीजाह बहादुर ने 1874 में बनाया था, तब इसकी लागत 1 करोड़ रुपये थी । आज इस सुंदर शाही महल की कीमत बढ़कर 4000 करोड़ पहुंच चुकी है।









            जयविलास महल, ग्वालियर में सिंध‍िया राजपरिवार का वर्तमान निवास स्थल ही नहीं एक भव्य संग्रहालय भी है।  महल में 400 से अधिक कमरे हैं, जिसका एक हिस्सा इतिहास को संजोने के लिए एक संग्रहालय के रूप में उपयोग किया जाता है। कुल 1,240,771 वर्ग फीट में फैले इस महल के एक प्रमुख हिस्से को वैसे ही संरक्षित किया गया है जिस तरह से इसे बनाया गया था।









       दरबार महल के बाद दूसरा सबसे आकर्षक कोना महल का डाइनिंग हॉल है। यहां मेज पर चांदी की ट्रेन दौड़ती हैं। ट्रेन का इस्तेमाल मेहमानों को भोजन परोसने के लिए किया जाता है । महल की छतों पर सोने की नक्काशी की गई है।





        


      हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस शाही महल के एक हिस्से को म्यूजियम बना दिया गया है जिसे देखने के लिए देश विदेश से पर्यटकों की भीड़ आती है। लेकिन दूसरे हिस्से में आज भी महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी पत्नी प्रियदर्शिनी और बच्चों के साथ रहते हैं।









         मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया का बड़ा नाम है । लेकिन मध्य प्रदेश चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद भी सिंधिया के हाथ कुछ लगा नहीं है। न ही वे सीएम बन पाए और न ही सरकार में मन का काम कर पाए। लिहाजा सरकार बनने के 14 महीने बाद सिंधिया ने कांग्रेस से बगावत कर दी। बगावत करके वो सीधे कांग्रेस की विरोधी बीजेपी का हिस्सा बन गए।

पिता मजदूर, मां दृष्टिहीन, खु़द सुन नहीं सकता था - इसके बावजूद उसने मेहनत की और IAS बन गया


      मन की चाह इंसान के लिए कामयाबी के सभी दरवाज़े खोल सकती है, बशर्ते इस चाह के साथ सच्ची लगन और मेहनत भी होनी चाहिए। गरीबी और शारीरिक अक्षमता के कारण कई लोग हिम्मत हार कर अपने अंदर की चाह को खत्म कर देते हैं जबकि आईएएस ऑफिसर मनीराम शर्मा जैसे लोग हर हाल में कामयाबी पाना जानते हैं। 
     आज हम जानते हैं एक मजदूर पिता और दृष्टिहीन मां के उस बधिर आईएएस बेटे के बारे में जिसने परिस्थितियों के साथ सरकारी नियमों के साथ भी 15 साल लंबी लड़ाई लड़ी और जीत गया ।


पिता मजदूर, मां दृष्टिहीन और बेटा बधिर  











     सन 1975 में राजस्थान, अलवर जिले के एक गांव बंदनगढ़ी में मनीराम शर्मा का जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ। गरीबी अकेली समस्या नहीं थी जिससे मनीराम का परिवार संघर्ष कर रहा था, बल्कि इसके साथ ही शारीरिक विकलांगता भी इस परिवार के हिस्से लिखी थी। मां की आंखों की रोशनी नहीं थी और पांच साल की उम्र से मनीराम की सुनने की शक्ति कम होने लगी। पिता मजदूर थे इस वजह से बच्चे का अच्छा इलाज ना करा सके जिसके कारण 9 साल की उम्र तक मनीराम ने पूरी तरह से सुनने की क्षमता खो दी। ग्रामीण क्षेत्रों के अच्छे भले बच्चे सही शिक्षा और सही मार्गदर्शन ना मिलने की वजह से जीवन में कुछ बेहतर नहीं कर पाते, मनीराम तो वैसे भी शारीरिक अक्षमता से जूझ रहे थे। लेकिन मनीराम के विषय में ये बात सबसे अच्छी थी कि संसाधनों की कमी के बावजूद उनका पढ़ने में बहुत मन लगता था। 

      इनके गांव में उन दिनों कोई स्कूल नहीं था। अन्य बच्चों के लिए पढ़ाई-लिखाई में मुश्किल आ रही थी लेकिन मनीराम पढ़ाई को लेकर जुनूनी थे। यही वजह रही कि वह हर रोज 5 किलोमीटर पैदल चलकर गांव के बाहर स्थित एक स्कूल में जाया करते थे। मनीराम की पढ़ाई के प्रति ये लगन बनी रही, जिसका परिणाम इनकी 10वीं और 12वीं की परीक्षा में देखा गया। इन्होंने बोर्ड की 10वीं की परीक्षा में पांचवां और बारहवीं की परीक्षा में सातवां स्थान प्राप्त किया।



बधिर होने के कारण नहीं बन पाए थे चपरासी




     10वीं की परीक्षा पास करने के बाद इनके पिता ये सोचकर खुश थे कि अब मनीराम को चपरासी की नौकरी मिल जाएगी। यही कारण था कि जब मनीराम के दोस्तों ने घर आकर उन्हें और उनके पिता को दसवीं में पास होने की खबर सुनाई तो पिता बहुत खुश हुए और उन्हें लेकर एक विकास पदाधिकारी के पास पहुंच गए. बेटे की नौकरी लगवाने की उम्मीद में उन्होंने अधिकारी से कहा कि बेटा दसवीं पास हो चुका है। इसे चपरासी की नौकरी दे दीजिए। इस पर उस अधिकारी का जवाब था कि “ये तो सुन ही नहीं सकता इसे न घंटी सुनाई देगी न ही किसी की आवाज। ये कैसे चपरासी बन सकता है ?” भले ही इस जवाब ने एक मजदूर पिता की उम्मीद को तोड़ा था मगर उन्हें क्या पता था कि चपरासी की नौकरी ना दे कर अनजाने में वह अधिकारी मनीराम के लिए आगे बढ़ने के रास्ते खोल रहा है। निसंदेह ही, अगर मनीराम उस दिन चपरासी बन जाते तो आगे चलकर कभी भी आईएएस ना बन पाते।

      अफसर के इस कोरे जवाब के बाद पिता की आंखों में आंसू जरूर छलक आए थे लेकिन मनीराम के अंदर का विश्वास कुछ और ही कह रहा था। मनीराम ने उस समय अपने पिता से कहा था कि ‘मुझ पर भरोसा रखिए, पास हुआ हूं तो एक दिन बड़ा अफसर ही बनूंगा।' शायद उस दिन इनके पिता को इनकी बात एक सुनहरी कल्पना लगी हो लेकिन मनीराम ने जो कहा उसे कर दिखाया।


नौकरियां बहुत मिलीं मगर लक्ष्य एक रहा 



       मनीराम के प्रधानाध्यापक उनकी क्षमता को पहचान गए थे इसीलिए चाहते थे कि वे बाहर जा कर अपनी पढ़ाई पूरी करें। आखिरकार उन्होंने मनीराम के पिता को इस बात के लिए मना ही लिया कि वो अपने बेटे को आगे की पढ़ाई के लिए बाहर भेजें। मनीराम बाहर पढ़ने जरूर आए लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी पढ़ाई या रहन सहन का भार अपने पिता पर नहीं डाला। अलवर के एक कॉलेज में दाखिला मिलने के बाद मनीराम अपनी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए ट्यूशन पढ़ाने लगे। इसके बाद इन्होंने कॉलेज के दूसरे वर्ष में राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा दी और इसे पास करते हुए क्लर्क की नौकरी प्राप्त ली । अंतिम वर्ष तक मनीराम ने पढ़ाई के साथ साथ नौकरी की और अंतिम वर्ष में राजनीतिक विज्ञान विषय में पूरे कॉलेज में टॉप किया। इसके बाद इन्होंने एनईटी की परीक्षा दी और पास हो गए। परीक्षा पास करने के बाद वह क्लर्क की नौकरी छोड़ कर लेक्चरर बन गए।
  
     पढ़ाई के मामले में मनीराम अभी संतुष्ट नहीं थे इसीलिए इन्होंने पीएचडी करने का फैसला किया। मनीराम ने राजनीतिक विज्ञान में पीएचडी तब पूरी की जब वह राजस्थान यूनिवर्सिटी में एम.ए., एमफिल के विद्यार्थियों को पढ़ा रहे थे। पीएचडी के बाद मनीराम का अंतिम और सबसे कठिन लक्ष्य था यूपीएससी. हालांकि आईएएस बनने का लक्ष्य लेकर मनीराम ने 1995 में ही यूपीएससी की परीक्षा दी थी लेकिन वह प्रीलिम्स भी क्लियर नहीं कर पाए थे। लेकिन 2005 के बाद वे तीन बार परीक्षा में बैठे और तीनों बार इसे पास किया। यदि मनीराम बहरेपन से ना जूझ रहे होते तो शायद 2005 में ही उनका आईएएस बनने का सपना पूरा हो जाता लेकिन इसी अक्षमता के कारण उन्हें नौकरी नहीं दी गई। 



आखिरकार कर दिया असंभव को संभव 








       इन्होंने फिर से 2006 में प्रयास किया और फिर से परीक्षा पास कर ली। इस बार इन्हें पोस्ट एंड टेलीग्राफ अकाउंट्स की कमतर नौकरी दी गई, जो इन्होंने स्वीकार कर ली। मनीराम समझ चुके थे कि जब तक उनके साथ ये बहरापन रहेगा तब तक उनका सपना पूरा नहीं हो सकता। इसी सोच के साथ वह अपनी इस अक्षमता का इलाज खोजने लगे। इसी दौरान एक डॉक्टर ने मनीराम शर्मा को बताया कि उनके कान के ऑपरेशन द्वारा उनके सुनने की क्षमता वापस आ सकती है लेकिन इसके लिए 7.5 लाख रुपयों की जरूरत पड़ेगी। मनीराम इतने सक्षम तो नहीं थे कि इतने रुपयों की व्यवस्था कर पाते लेकिन फिर भी उन्होंने कोशिश की और कामयाब रहे ।

     इनके सांसद ने विभिन्न संगठनों और आम लोगों के सहयोग से ऑपरेशन में लगने वाली धनराशि इकट्ठी कर ली। मनीराम शर्मा का ऑपरेशन सफल रहा और वह पूरी तरह से ठीक हो गए। अब उन्हें उनका लक्ष्य पाने से कोई नहीं रोक सकता था। 2009 में उन्होंने फिर से यूपीएससी की परीक्षा दी और उसे पास भी कर लिया। 15 साल की प्रतीक्षा और कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार मनीराम ने असंभव लगने वाले लक्ष्य को पा लिया और बन गए आईएएस अधिकारी।

Wednesday, May 26, 2021

दिव्या गोदारा का भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट पद पर हुआ चयन



       
 




नवलगढ़। उदयपुरवाटी के गोदारा का बास (सिंगनोर) के चौधरी रामकरण गोदारा की सुपौत्री व वैद्य श्रवण कुमार गोदारा की पुत्री दिव्या गोदारा का भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर  चयन हुआ हुआ है। दिव्या ने यूपीएससी द्वारा आयोजित सीडीएस एक्जाम 2020 व एसएसबी इंटरव्यू पास कर ऑल इंडिया में 16 वीं रैक प्राप्त की है । दिव्या अपनी सफलता का श्रेय अपनी माता सरोज व पिता वैद्य श्रवण कुमार गोदारा, मामाजी डॉ. विजेंद्रसिंह झाझड़िया, बड़ी बहिन डॉ. दीक्षा सहित अन्य परिजनों को दिया।  डॉ. वीएस झाझड़िया ने बताया कि दिव्या बचपन से ही भारतीय सेना में जाने की इच्छा रखती थीं । बीटेक अजमेर की सरकारी कॉलेज से करने के बाद इंफोसिस जयपुर में सिस्टम इंजीनियर के पद पर काम करते हुए सेल्फ स्टडी करते हुए यह सफलता प्राप्त की । दिव्या ने इस सफलता के साथ झुंझुनू जिले का नाम रोशन किया है ।

Tuesday, May 25, 2021

आम खाने के बाद भूलकर भी ना खाएं ये पांच चीजें, वरना हो सकती है गंभीर बीमारी





आम खाने के तुरंत बाद दही खाना गलत है । दरअसल आम और दही को एक साथ खाने से हमारे शरीर में अधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड बनने लगती है.

गर्मियों का मौसम है और इन दिनों में आम खूब मिलता है । आम को फलों का राजा कहा जाता है, इसके खास स्वाद के कारण अधिकतर लोग आम खाना पसंद करते हैं । आम का सेवन करने के कई फायदे हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि आम खाने के बाद कुछ चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए, वरना इसके भारी नुकसान हो सकते हैं।

 तो आइए जानते हैं कि आम का सेवन करने के बाद किन चीजों को नहीं खाना चाहिए-


पानी नहीं पीना चाहिए-



आम खाने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए। दरअसल आम खाने के तुरंत बाद पानी पीने से पेट में दर्द, गैस और एसिड बनने की समस्या पैदा हो जाती है। बार - बार ऐसा करने से आंतों में इंफेक्शन का खतरा भी बढ़ जाता है, जो काफी गंभीर हो सकता है। आम खाने के आधे या एक घंटे बाद पानी पिया जा सकता है ।




कोल्ड ड्रिंक नहीं पीनी चाहिए-





आम खाने के तुरंत बाद कोल्ड ड्रिंक पीना नुकसानदायक साबित हो सकता है। आम में काफी मात्रा में शुगर पाई जाती है और कोल्ड ड्रिंक में भी काफी ज्यादा शुगर होती है, ऐसे में अगर कोई व्यक्ति डायबिटीज का शिकार है तो उसके लिए आम और कोल्ड ड्रिंक का कॉम्बिनेशन काफी खतरनाक साबित हो सकता है।



दही



आम खाने के तुरंत बाद दही नहीं खाना चाहिए। दरअसल आम और दही को एक साथ खाने से हमारे शरीर में अधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड बनने लगती है, जिससे शरीर में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। 



करेला



आम के बाद करेले का सेवन नहीं करना चाहिए। दरअसल आम खाने के तुरंत बाद अगर आप करेला खाते हैं तो जी मिचलाना, उल्टी और सांस लेने में परेशानी की समस्या हो सकती है।




तीखी मिर्ची और मसाले वाली चीजें-



    तीखी मिर्च और मसाले वाली चीजें खाना बनाने में इस्तेमाल होती रहती हैं लेकिन अगर आपने आम खाया है और तुरंत ही आप मसाले वाली चीजें या मिर्ची वाली चीजें खाएंगे तो इससे आपको पेट और त्वचा के रोग उत्पन्न हो सकते हैं. इसलिए आगे से अगर आप आम खाते हैं तो उक्त चीजों का सेवन ना करें.

Monday, May 24, 2021

निम्बू की खेती से कृषि को दिए नये आयाम, 1 से 2 लाख की लागत से अभिषेक 5 से 6 लाख रुपये कमाते हैं





          हमारे देश में विभिन्न किस्म की खेती की जाती है। कई लोग केवल फल की खेती करते हैं और  कई अन्न उपजाने का काम करते हैं । कई फूलों के बगीचे लगाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं और कई लोगों के जीविका का साधन मत्स्य या गौ पालन भी है। एक ऐसे ही किसान हैं अभिषेक जैन जो नींबू की खेती और अचार के बिजनेस से लाखों की कमाई कर रहे हैं।



अभिषेक जैन का परिचय -







             अभिषेक जैन राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के रहने वाले हैं। वह अपने गांव संग्रामगढ़ में अपने पुश्तैनी जमीन पर 2007 से ऑर्गेनिक नींबू और अमरूद की खेती कर रहे हैं। अभिषेक के अनुसार नींबू ने मानो उनका जीवन बदल दिया है। 1.75 एकड़ जमीन में लगाए नींबू से उनकी औसत आय 6 लाख रुपए है, जिसमें लागत खर्च लगभग 1 से 1.5 लाख रूपये है।

           अभिषेक जैन का जीवन संघर्ष भरा रहा है। उनकी इच्छा किसान बनने की नहीं थी। उन्होंने अजमेर से अपनी बी.कॉम. की पढ़ाई पूरी कर मार्बल का बिजनेस शुरू किया । तभी अचानक उनके पिता का निधन हो गया। पिता के आकस्मिक निधन के कारण उन्हें खेती की तरफ रुख मोड़ना पड़ा।





         अभिषेक ने खेती की शुरुआत में खेत में नींबू और अमरूद के पौधे लगाए। पहले यह काम थोड़ा मुश्किल लगा लेकिन धीरे धीरे उन्हें प्रकृति से काफी लगाव हो गया। अभिषेक खेती करने के लिए हानिकारक रसायनों का उपयोग नहीं करते हैं। वह खुद से बनाए प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल करते हैं। जैविक खेती करने की वजह से उनकी साल में लगभग 2 से 3 लाख रुपये की बचत होती है, जो पहले बाजार से उर्वरक खरीदने में खर्च होते थे। जैविक खेती के अनेकों फायदे हैं। इससे मिट्टी की गुणवत्ता में भी काफी सुधार हुआ है। वह पूरी लगन से नींबू और अमरूद की खेती करते हैं। आगे इसे और भी बढ़ाने कि कोशिश कर रहे हैं। साथ ही वे नींबू का अचार भी बनाते हैं।

       अभिषेक के घर में हमेशा ही नींबू का अचार बनता रहता था इसलिए उन्होंने घरवालों से सीख कर अचार बनाना प्रारंभ कर दिया। अपने बनाए अचार को एक बार उन्होंने अपने मेहमानों को दिया जो कि  उन्हें बहुत पसंद आया। धीरे-धीरे अभिषेक का अचार काफी लोगों को पसंद आने लगा और लोग उनसे आचार की डिमांड भी करने लगे। प्रारंभ में उन्होंने लगभग 50 किलोग्राम अचार बनाकर मुफ्त में लोगों को बांट दियख था। सन 2016 में उन्होंने व्यवसाय के मकसद से अचार बनाया और तब से प्रति वर्ष 500-700 किलोग्राम तक अचार बेच लेते हैं। पैकिंग और शिपिंग के अलावा मामूली खर्च के साथ 900 ग्राम की बोतल की कीमत 200 रूपये है।








          नींबू के अनेकों फायदे हैं। यह पूरे साल उपलब्ध रहता है और हर समय इसकी ज़रूरत भी पड़ती है। इसके उपयोग से खाने का स्वाद भी बढ़ जाता है और यह सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है। अभिषेक के अनुसार नींबू की खेती मानसून की पहली बारिश के बाद करनी चाहिए। पौधे लगाने के लगभग 3 साल बाद वे अच्छे फल देने लगते हैं। इस काम में अभिषेक लोगों को रोजगार भी देते हैं जैसे फल तोड़ने के लिए श्रमिकों की आवश्कता पड़ती है। हालांकि अचार बनाने का काम उनकी मां और पत्नी ही संभाल लेती हैं।

        अभिषेक जैन लोगों को जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं। जिनके पास ज़मीन नहीं है या जो लोग शहरों में बसे हुए हैं, उन्हें छत पर खेती करने की सलाह देते हैं। 

Sunday, May 23, 2021

गजेंद्र सिंह शेखावत ने अशोक गहलोत से पूछा, राजस्थान में 11.5 लाख डोज की बर्बादी का जिम्मेदार कौन ?



राजस्थान : गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार कहा कि कोरोना वैक्सीन की एक डोज खराब करना एक जिंदगी को सुरक्षा कवच से वंचित करने जैसा है लेकिन जिन्हें जान से खेलने की पुरानी आदत है वो कहां सुधरेंगे ?









जोधपुर । राजस्थान में 11.5 लाख कोरोना वैक्सीन डोज बर्बाद होने पर केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पूछा कि इस बर्बादी की जवाबदेही कौन लेगा ? गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार कहा कि कोरोना वैक्सीन की एक डोज खराब करना एक जिंदगी को सुरक्षा कवच से वंचित करने जैसा है, लेकिन जिन्हें जान से खेलने की पुरानी आदत है वो कहां सुधरेंगे ? अब तक राजस्थान में कोरोना वैक्सीन की 11.5 लाख डोज बर्बाद की जा चुकी हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वैक्सीन की कमी के लिए केंद्र सरकार पर जिम्मेदारी डालते हैं। मैं पूछता हूं कि इस बर्बादी की जवाबदेही कौन लेगा ? यह तो आपराधिक कृत्य है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। यह जनता की जिंदगी का सवाल है। जवाबदेह को सामने लाना भी गहलोत जी की जिम्मेदारी है, अन्यथा हम यह मान लें कि इसके जिम्मेदार स्वयं मुख्यमंत्री हैं?



मुकुल माधव फाउंडेशन ने शेखावत को सौंपे ऑक्सीजन कंसट्रेटर और चिकित्सकीय उपकरण




          ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ फिजीशन ऑफ इंडियन ओरिजन (BAPIO ) मुकुल माधव फाउंडेशन की ओर ऑक्सीजन कंसट्रेटर और चिकित्सकीय उपकरण जोधपुर सांसद केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को सौंपे गए । इसके अलावा समाजसेवियो और उद्यमियों की ओर से ग्रामीण क्षेत्रों में वितरण के लिए बीस हजार मास्क और सैनिटाइजर सौंपे। माहेश्वरी महासभा के राष्ट्रीय महासचिव संदीप काबरा और पूर्व उप महापौर देवेंद्र सालेचा ने मंत्री शेखावत के निवास पर जाकर ब्रिटिश एसोसिएशन इंडिया फिजीशन ऑफ इंडिया ओरिजन  मुकुल माधव फाउंडेशन की ओर ऑक्सीजन कंसट्रेटर, मॉनिटर और चिकित्सकीय उपकरण सौंपे। इसी प्रकार समाजसेवी एवम् उद्यमी सोहन भूतडा, संदीप काबरा, देवेन्द्र सालेचा, जय प्रकाश अग्रवाल, रोहित कालानी, संदीप सिंघवी और भरत कानूनगो ने कोविड केयर सेंटर में जाकर बीस हजार मास्क और सेनेटाइजर सौंपे। यह ग्रामीण क्षेत्रों में वितरित किए जाएंगे। इस दौरान अनेक पार्षद मौजूद रहे।

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